सूर्योदय बेला में ही अस्त हो गया पत्रकारिता का ‘सूर्य’
मनोज दुबे
उत्तर प्रदेश के पत्रकारिता जगत की दबंग हस्ती और मुझ पर दशकों से अनवरत अपने स्नेह की वर्षा करते रहने वाले श्री राजनाथ सिंह ‘सूर्य’ आज सूर्योदय की बेला में ही यकायक अस्त हो गये। पिछले कुछ वर्षों से उनका शरीर तो शिथिल होता जा रहा था, किन्तु अपने समय के सरोकारों के प्रति उनकी सजगता आखिरी वक्त तक बरकरार रही। वह अंतिम समय तक सक्रिय रहे। उनके साथ ही उनकी लेखनी भी चिरनिद्रा में लीन हो गयी है।
राजनाथ जी संपादकीय परामर्शदाता के रूप में ‘चौपाल चर्चा’ को सदैव अपना आशीष देते रहे और ‘चौपाल चर्चा’ में लिखने के लिए उन्हें कभी स्मरण नहीं करवाना पड़ा। पत्रिका की अनवरतता को लेकर वह सदैव चिंतित रहते थे। वह हिन्दी के वरिष्ठतम संपादकों में से एक थे, किन्तु मेरे प्रति उनकी आत्मीयता में कभी उनके बड़प्पन की छाया भी नहीं पड़ने पायी। सच तो यह है कि मैं कब उनके परिवार का सदस्य बन गया यह पता ही नहीं चला।
कुछ वर्ष पहले की बात है, मैंने उनसे आग्रह किया कि वह मेरे अनुज के विवाह के अवसर पर बलिया में मेरे गांव थम्हनपुरा पधारकर हमें अपना आशीर्वाद दें। उन्होंने आग्रह स्वीकार कर लिया था, किन्तु फिर भी मन में कहीं यह संशय बना रहा कि इस उम्र में इतनी दूर की यात्रा करना वह शायद न पसंद करें, लेकिन उन्हें कार्यक्रम में उस शाम अपने बीच उपस्थित देखकर मन उनके प्रति श्रद्धा और सम्मान से भर गया था। बलिया के उस दियारा में अकेले पहुंचना, वह भी बिना कोई सूचना दिये, आसान न रहा होगा। लेकिन उनकी आत्मीयता उन्हें गंगा की कछार पर बसे उत्तर प्रदेश की अंतिम छोर थम्हनपुरा तक खींच ले गयी थी।
यह उनकी आत्मीयता ही थी जो मेरी बेकारी के दिनों में उन्हें मुझे लेकर दैनिक जागरण के कार्यालय तक खींच ले गयी थी। जहां उन्होंने मुझे स्वर्गीय विनोद शुक्ल जी के हाथों सौंप दिया था। यह अलग बात है कि वह प्रकरण फलीभूत नहीं हुआ किन्तु राजनाथ जी के अगाध स्नेह से तो मैं सराबोर हो ही गया था।
उनकी सामाजिक राजनीतिक दायरा कितना बड़ा था, यह आभास उनके आवास पर सुबह से ही उमड़ते जनसमुदाय को देखकर सहज ही लगाया जा सकता था। महामहिम राज्यपाल, मुख्यमंत्री से लेकर राजनेताओं, पत्रकारों, समाजसेवियों और गणमान्य नागरिकों सहित सैकड़ों लोगों ने उन्हें अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित की।
राजनाथ जी बहुआयामीय व्यक्तित्व के स्वामी थे। पत्रकार, सांसद, समाजसेवी और आर.एस.एस. के प्रचारक के नाते उन्होंने जनमानस के बहुत बड़े वर्ग पर अपनी छाप छोड़ी। उनकी कमी बहुत लोगों को बहुत दिनों तक सालती रहेगी। मेरे लिए तो यह क्षति अपूरणीय ही रहेगी।
उन्होंने 82 वर्ष की आयु पायी और अपना सारा सक्रिय जीवन देश और समाज को सौंप दिया। जाते-जाते अपनी देह को भी बेकार नहीं जाने दिया। उसे चिकित्सा शास्त्र के विद्यार्थियों के लिए छोड़ गये। उन्होंने बरसों पहले लखनऊ के किंग्स जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय को देह दान कर दिया था। उनकी इच्छा के अनुसार ही उनका शरीर केजीएमयू को सौंप दिया गया।
सर! आपकी आत्मीयता से मन का जो कोना सदैव पूरित होता रहता था, वह अब रिक्त ही रहेगा। यह रिक्तता सदैव आपकी स्मृति अक्षुण्ण रखेगी।
विनम्र श्रद्धांजलि!