Skip to content
Monday, January 30, 2023
Latest:
  • चीन की लुटिया डूबने की कगार पर! GDP में आई भारी गिरावट, 70 से अधिक देशों पर मंदी का खतरा
  • कैप्टन अमरिंदर सिंह बन सकते हैं महाराष्ट्र के गवर्नर, छूट जाएगी सक्रिय राजनीति!
  • छठी बार ‘परीक्षा पे चर्चा’: PM मोदी ने बच्चों संग लगाई क्लास, पढ़ाया दबाव और टाइम मैनेजमेंट का पाठ, कहा- काम संतोष देता है
  • महिला बीडीसी सदस्य की हत्या से मची सनसनी, महिला का बेटा यूपी पुलिस में है दारोगा !
  • दुनिया के अमीरों की लिस्ट में बड़ा फेरबदल, Gautam Adani सातवें नंबर पर खिसके
The India Post News

The India Post News

Latest Updated Hindi News

  • देश
  • विदेश
  • उत्तर प्रदेश
  • अन्य राज्य
  • खेल
  • हमारे कॉलमिस्ट
  • महाराष्ट्र / पुणे / मुंबई
  • बिज़नेस
  • मनोरंजन
  • लाइफ स्टाइल
Facebook Featured Latest MORE RECENT NEWS & ARTICLES कही-अनकही सचकही विशेष स्पेशल हमारे कॉलमिस्ट 

सिविल सेवकों का जनसेवक बनने का बढ़ता रुझान

December 10, 2018 indiapost

चुनाव के मौसम में राजनेताओं द्वारा दल-बदल करने की सूचनाएं तो हमेशा से मिलती रहीं हैं, लेकिन इस बार के चुनाव की एक विशेषता यह रही कि बहुत से वरिष्ठ अधिकारी और वे भी विशेषकर ऑल इंडिया सर्विसेस के ऑफिसर्स राजनीति में आए. महत्वपूर्ण बात उनका राजनीति में आना नहीं है, जितना यह कि वे अपनी-अपनी नौकरियों से त्यागपत्र देकर आए और उनमें से कई तो ऐसे भी थे, जिनके अभी नौकरी के कई साल बाकी थे. इनमें आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की संख्या बहुत ज्यादा रही. एक बात और भी गौर करने की है कि भले ही अभी पांच ही राज्यों के विधानसभा चुनाव हुए हैं, लेकिन इन अधिकारियों की दृष्टि इससे आगे अगले साल होने वाले चुनाव तक फैली हुई है. इसलिए शायद रिज़ाइन करके पॉलिटिक्स ज्‍वॉइन करने वाले अधिकारियों की संख्या काफी रही.

इसकी शुरुआत लगभग दो महीने पहले तब हुई, जब छत्तीसगढ़ कैडर के 2005 बैच के आईएएस ओपी चौधरी ने अपनी नौकरी छोड़कर भारतीय जनता पार्टी ज्‍वॉइन कर ली. पिछले ही महीने सतेन्द्र कुमार ने आईएफएस से त्यागपत्र देकर कांग्रेस का पल्ला पकड़ा, तो कुछ ही दिनों पहले उड़ीसा कैडर के 1994 की आईएएस अपराजिता सारंगी ने भी अपनी नौकरी को छोड़-छाड़कर भारतीय जनता पार्टी की नौका में बैठना बेहतर समझा.

इनमें से कई अधिकारी ऐसे हैं, जो विधानसभा के चुनाव में ही अभी से उतर गए हैं. आईपीएस सवाई सिंह चौधरी ने राजस्थान में जहां कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ा, वहीं 1983 बैच के आईएएस ओपी सैनी राजस्थान से ही बीजेपी की ओर से चुनावी अखाड़े में रहे. एक रोचक बात यह कि आईएएस मदन मेघवाल ने राजनीति में आने के लिए त्यागपत्र तो दे दिया था, लेकिन जब उन्हें चुनाव का टिकट नहीं मिला, तो अपना त्यागपत्र वापस लेने में अपनी भलाई समझी. जाहिर है कि जिन्होंने अभी टिकट नहीं लिया है या जिन्हें अभी टिकट नहीं दिया गया, उनके 2019 के लोकसभा के चुनाव में टिकट मिलने की पूरी-पूरी संभावना होगी.

प्रशासकों द्वारा राजनीति के क्षेत्र में पदार्पण करना कोई नई बात नहीं है. प्रसिद्ध प्रशासक टीएन शेषन स्वयं इसमें और पराजित तथा निराश होकर चुपचाप बैठ गए. भारतीय विदेश सेवा के मणिशंकर अय्यर ने काफी नाम कमाया. इसी सेवा की मीरा कुमार के राजनैतिक कैरियर के बारे में हम सभी अच्छी तरह जानते हैं. अगर वर्तमान सरकार के ही मंत्रि-परिषद को देखें, तो उसमें केजे अलफांसो, आरकेसिंह, हरदीप सिंह पुरी तथा सत्यपाल सिंह आदि अपने समय में सिविल सर्वेन्ट ही रहे हैं. विदेश राज्य मंत्री वीके सिंह तो आर्मी के चीफ ही थे.

ऑल इंडिया सर्विसेस के अधिकारियों का इस प्रकार राजनीति में आना शुरू से ही एक विवाद का विषय रहा है. निश्चित रूप से मौलिक अधिकारों के अनुसार सर्विस के बाद राजनीति में आने से रोका नहीं जा सकता. इस बात से भी इंकार करना सही नहीं होगा कि इन प्रशासकों के राजनीति में आने से प्रशासन के स्तर में कहीं न कहीं उस समय सुधार देखने को मिलता है, जब हम उन्हें मंत्रि-परिषद के सदस्यों के रूप में राजनीतिक-प्रशासक की भूमिका में देखते हैं. यहां तक कि वर्तमान में दिल्ली जैसे राज्य के मुख्यमंत्री भारतीय राजस्व सेवा से आए हुए हैं. इससे पहले सन् 2000 में छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में प्रथम राजनैतिक-प्रशासक बनने का श्रेय जिन अजीत जोगी को मिला, वे भी भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी थे.

लेकिन इन तर्कों को ज्यों का त्यों स्वीकार करना आसान नहीं है. प्रशासकों का इस तरीके से राजनीति में आना अनेक प्रकार के प्रश्न भी खड़े करता है. उदाहरण के तौर पर यह सोचा जाना चाहिए कि कहीं ऐसा तो नहीं कि नौकरी में रहते हुए ये प्रशासक राजनेताओं के दबाव में काम करते-करते या उनके सही और गलत निर्देशों के साथ लगातार सामंजस्य बैठाते-बैठाते बुरी तरह से फ्रस्टेड हो जाते हों. यह भी हो सकता है कि यदि कोई प्रशासक संवेदनशील है, तो अपने दायित्वों के निर्वाह के दौरान उसे राजनेताओं के हित तथा सामाजिक हित में जबर्दस्त टकराव महसूस होता हो.

वर्तमान प्रशासक जब सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करते हैं, तो उनके दिमाग में निश्चित रूप से कुछ सामाजिक आदर्श उपस्थित रहते हैं, लेकिन नौकरी में आते ही वे अपने उन आदर्शों की कैंचुली को उतारने में ही अपनी भलाई समझने लगते हैं. यदि वे ऐसा नहीं करते, तो उनका हश्र हरियाणा के आईएएस अशोक खेमका की तरह होता है. ऐसे उदाहरण प्रशासकों की मनोवृत्ति को कमजोर करने के लिए पर्याप्त होते हैं. नौकरी में आने के बाद उनका यह भ्रम टूटने लगता है कि वे ही सच्चे प्रशासक हैं और अच्छा काम कर सकते हैं. जब वे देखते हैं कि राजनेता ही सर्वेसर्वा हैं, तो फिर यह निर्णय करना स्वाभाविक है कि हम ही क्यों न राजनेता बन जाएं. वर्तमान घटनाएं शायद इसी तरह की प्रवृत्ति की ओर संकेत कर रही हैं.

लेकिन इन प्रशासकों का राजनीति के क्षेत्र में स्वागत करने से पहले दो मुख्य बातों पर भी विचार किया जाना चाहिए. पहला तो यह कि सरकारी अधिकारियों से उनकी आचार संहिता के अंतर्गत राजनैतिक तटस्थता की अपेक्षा की जाती है. ऐसा इसलिए, ताकि वे राजनीति से अप्रभावित रहकर संविधान एवं कानून की दृष्टि से अपने दायित्वों को निभा सकें. इसके लिए बकायदा उन्हें संवैधानिक संरक्षण भी दिया गया है, लेकिन यदि वे सर्विस से त्यागपत्र देने या सर्विस से सेवामुक्त होने के तुरन्त बाद राजनीति में आते हैं, तो स्वाभाविक तौर पर उनकी इस तटस्थता के सिद्धांत के प्रति संदेह पैदा होता है. मन में यह विचार आता है कि विभिन्न पदों पर रहते हुए उन्होंने उस राजनैतिक दल के प्रति सद्भाव रखकर बहुत से निर्णय लिये होंगे.

वैसे भी यह नियम है कि कोई भी सरकारी अधिकारी सेवानिवृत्त होने के दो साल बाद तक किसी भी बड़े कार्पोरेट में नौकरी नहीं कर सकता. इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए सन् 2012 में चुनाव आयोग ने सफारिश की थी कि सरकारी अधिकारियों को दो साल तक राजनीति में न आने संबंधी नियम बनाया जाना चाहिए, लेकिन वह नहीं हो सका.

दूसरी बात यह कि व्यावहारिक स्तर पर यह देखने में आया है कि प्रशासकों की अपनी एक अलग किस्म की विशिष्ट जीवनशैली बन चुकी होती है. वे जनता से उस तरीके से संबंध बनाने में असफल होते देखे गए हैं, जिस तरीके से राजनेता बना लेते हैं. दूसरी ओर, जनता भी उन्हें अपने बीच का नहीं मानती. ऐसी स्थिति में दोनों के मध्य एक अलगाव की मानसिकता काम करती रहती है, जिसे लोकतंत्र के लिए बहुत शुभ नहीं कहा जा सकता. वैसे भी भारत के पिछले दौर का प्रशासन यह बताता है कि अधिकांश प्रशासक राजनेता के रूप में राष्ट्र की स्मृति में एक बहुत अच्छी छवि की छाप छोड़ने में असफल ही रहे हैं.

वर्तमान स्थितियों को देखते हुए कहा जा सकता है कि प्रशासकों को राजनीति में आने से रोकना संभव नहीं है. बल्कि इनकी संख्या तो निरन्तर बढ़ती ही जानी है. फिर भी ऐसा लगता है कि इस विषय पर विचार-विमर्श करके कोई एक ऐसा रास्ता निकाला जाना चाहिए, जिससे प्रशासकों को अपनी तटस्थता बनाये रखने में भी मदद मिले और साथ ही राजनीति को उनका लाभ भी मिल सके.

(डॉ. विजय अग्रवाल वरिष्ठ लेखक और स्‍तंभकार हैं)

  • ← अरविंद केजरीवाल: राजनीति के लिए कुछ भी करने को तैयार, गठबंधन के लिए स्टालिन-ए राजा से की मुलाकात
  • क्या लालू प्रसाद यादव का परिवार टूट के कगार पर पहुंच गया है? →

You May Also Like

सोनिया गांधी पर सवालों से कैसे निपटना है इस बारे में वकीलों को पर्चियां दे रहा है मिशेल : ED

December 29, 2018 indiapost

सेंट्रल विस्टा पर विलाप, राजस्थान में ₹125 करोड़ के प्रोजेक्ट का शिलान्यास: कॉन्ग्रेस की हिप्पोक्रेसी का ताजा नमूना

June 3, 2021 indiapost

अब इलाहाबाद का नाम होगा प्रयागराज, उसके बाद अगला नंबर कहीं आपके शहर का तो नहीं!

October 14, 2018 indiapost

ताज़ा समाचार

चीन की लुटिया डूबने की कगार पर! GDP में आई भारी गिरावट, 70 से अधिक देशों पर मंदी का खतरा
Facebook Featured Latest MORE RECENT NEWS & ARTICLES मुख्य विदेश 

चीन की लुटिया डूबने की कगार पर! GDP में आई भारी गिरावट, 70 से अधिक देशों पर मंदी का खतरा

January 27, 2023 indiapost

चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो (एनबीएस) के मुताबिक देश की वार्षिक जीडीपी वृद्धि (China GDP) तीन फीसदी तक गिर गई

कैप्टन अमरिंदर सिंह बन सकते हैं महाराष्ट्र के गवर्नर, छूट जाएगी सक्रिय राजनीति!
Facebook Featured Latest MORE RECENT NEWS & ARTICLES दिल्ली देश मुख्य राजनीती 

कैप्टन अमरिंदर सिंह बन सकते हैं महाराष्ट्र के गवर्नर, छूट जाएगी सक्रिय राजनीति!

January 27, 2023 indiapost
छठी बार ‘परीक्षा पे चर्चा’: PM मोदी ने बच्चों संग लगाई क्लास, पढ़ाया दबाव और टाइम मैनेजमेंट का पाठ, कहा- काम संतोष देता है
Facebook Featured Latest MORE RECENT NEWS & ARTICLES दिल्ली देश मुख्य 

छठी बार ‘परीक्षा पे चर्चा’: PM मोदी ने बच्चों संग लगाई क्लास, पढ़ाया दबाव और टाइम मैनेजमेंट का पाठ, कहा- काम संतोष देता है

January 27, 2023 indiapost
महिला बीडीसी सदस्य की हत्या से मची सनसनी, महिला का बेटा यूपी पुलिस में है दारोगा !
Facebook Featured Latest MORE RECENT NEWS & ARTICLES उत्तर प्रदेश मुख्य लखनऊ 

महिला बीडीसी सदस्य की हत्या से मची सनसनी, महिला का बेटा यूपी पुलिस में है दारोगा !

January 27, 2023 indiapost
दुनिया के अमीरों की लिस्ट में बड़ा फेरबदल, Gautam Adani सातवें नंबर पर खिसके
Facebook Featured Latest MORE RECENT NEWS & ARTICLES दिल्ली देश बिज़नेस मुख्य 

दुनिया के अमीरों की लिस्ट में बड़ा फेरबदल, Gautam Adani सातवें नंबर पर खिसके

January 27, 2023 indiapost
Narendra Giri Death Case: आनंद गिरि पर आज तय होंगे आरोप
Facebook Featured Latest MORE RECENT NEWS & ARTICLES उत्तर प्रदेश प्रयाग मुख्य लखनऊ 

Narendra Giri Death Case: आनंद गिरि पर आज तय होंगे आरोप

January 27, 2023 indiapost
… तो अब यूक्रेन को F-16 देगा अमेरिका, जानें- रूस के खिलाफ जंग में कैसे साबित हो सकता है गेमचेंजर?
Facebook Featured Latest MORE RECENT NEWS & ARTICLES मुख्य विदेश 

… तो अब यूक्रेन को F-16 देगा अमेरिका, जानें- रूस के खिलाफ जंग में कैसे साबित हो सकता है गेमचेंजर?

January 27, 2023 indiapost
‘शिकवा नहीं किसी से….’, फैमिली संग सुसाइड से पहले अपना दर्द बयां कर गए BJP नेता संजीव मिश्रा
Facebook Featured Latest MORE RECENT NEWS & ARTICLES अन्य राज्य मध्य प्रदेश मुख्य 

‘शिकवा नहीं किसी से….’, फैमिली संग सुसाइड से पहले अपना दर्द बयां कर गए BJP नेता संजीव मिश्रा

January 27, 2023 indiapost
कांग्रेस के प्लान पर फिर रहा पानी, भारत जोड़ो यात्रा के समापन में नहीं आएंगे ये साथी
Facebook Featured Latest MORE RECENT NEWS & ARTICLES दिल्ली देश मुख्य राजनीती 

कांग्रेस के प्लान पर फिर रहा पानी, भारत जोड़ो यात्रा के समापन में नहीं आएंगे ये साथी

January 27, 2023January 27, 2023 indiapost
पाक में श्रीलंका वाला डर? कैसे डॉलर के मुकाबले 255 रुपये तक गिरावट से मचा कोहराम
Facebook Featured Latest MORE RECENT NEWS & ARTICLES मुख्य विदेश 

पाक में श्रीलंका वाला डर? कैसे डॉलर के मुकाबले 255 रुपये तक गिरावट से मचा कोहराम

January 27, 2023 indiapost
कौन हैं हिंडनबर्ग के फाउंडर नाथन एंडरसन? जिनकी रिपोर्ट से धराशायी हुए Adani के शेयर…जानें उठाए गए बड़े सवाल और अडानी ग्रुप की सफाई
Facebook Featured Latest MORE RECENT NEWS & ARTICLES दिल्ली देश मनोरंजन मुख्य 

कौन हैं हिंडनबर्ग के फाउंडर नाथन एंडरसन? जिनकी रिपोर्ट से धराशायी हुए Adani के शेयर…जानें उठाए गए बड़े सवाल और अडानी ग्रुप की सफाई

January 27, 2023 indiapost
JNU के बाद हैदराबाद यूनिवर्सिटी में बवाल, देश के कॉलेजों तक ऐसे पहुंचा BBC डॉक्यूमेंट्री विवाद
Facebook Featured Latest MORE RECENT NEWS & ARTICLES दिल्ली देश मुख्य राजनीती 

JNU के बाद हैदराबाद यूनिवर्सिटी में बवाल, देश के कॉलेजों तक ऐसे पहुंचा BBC डॉक्यूमेंट्री विवाद

January 27, 2023 indiapost
Pathaan से बड़े सक्सेस की उम्मीद लगाने वालों को Kangana Ranaut का पैगाम- गूंजना तो यहां सिर्फ जय श्री राम है
Facebook Featured Latest MORE RECENT NEWS & ARTICLES मनोरंजन मुख्य 

Pathaan से बड़े सक्सेस की उम्मीद लगाने वालों को Kangana Ranaut का पैगाम- गूंजना तो यहां सिर्फ जय श्री राम है

January 27, 2023 indiapost
‘Q फीवर’ का हैदराबाद में कहर, कसाइयों को बूचड़खानों से दूर रहने की सलाह, नई बीमारी से हो जाएं सावधान
Facebook Featured Latest MORE RECENT NEWS & ARTICLES अन्य राज्य मुख्य 

‘Q फीवर’ का हैदराबाद में कहर, कसाइयों को बूचड़खानों से दूर रहने की सलाह, नई बीमारी से हो जाएं सावधान

January 27, 2023 indiapost
‘खूंखार जानवर हैं सिद्धू, उनसे दूर रहें’, रिहाई न होने पर ऐसा क्यों बोलीं नवजोत कौर
Facebook Featured Latest MORE RECENT NEWS & ARTICLES दिल्ली देश मुख्य 

‘खूंखार जानवर हैं सिद्धू, उनसे दूर रहें’, रिहाई न होने पर ऐसा क्यों बोलीं नवजोत कौर

January 27, 2023 indiapost
Copyright © 2023 The India Post News. All rights reserved.
Theme: ColorMag by ThemeGrill. Powered by WordPress.